सब कुछ
अब पावर स्फीयर में है
एक कराह
बस पब्लिक स्फीयर में है
मुक्कमल इंसानी जिंदगी बस ख्वाहिश में है
कुछ-न-कुछ गड़बड़ी
इंसानी परवरिश में है
सियासत के हवाले
अदब भी अदाबत भी और
कोहराम अदालत में है
स्याह है बहुत सियासी खिदमत और जज्वात के गलियारों का
रोशनदान भी जहमत में है
आवाम की नजरों से
ये बात भी ओझल
किस सूरत-ए-हाल में
वक्त का शायर सिर पीटता है
लिखता नहीं
बस कलम घसीटता है
तालियाँ जितनी बजे
हिफाजत में उसके
हाथ कोई उठता नहीं है
ऐसे में वह जो वक्त का हरकारा
जाने जी रहा किस हिकारत में है
सब कुछ तो सियासी खिदमत में है
सोमवार, 27 जून 2016
सब कुछ तो अब सियासी खिदमत में है
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सादर, प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan