दोस्ती का मूलमंत्र

लेबल: लोक व्यवहार

सृष्टि में सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हैं। जुड़ाव एक अपर को आश्रय देता है। लेकिन आश्रय की मात्रा एक स्तर तक बढ़ जाने के बाद ही कोई एक चीज दूसरे से पर आश्रित होती है।

दोस्ती का मूलमंत्र है अनाश्रित भरोसा -- Non-dependant dependability.

जिसे हम मुहब्बत कहते हैं, उसे संवेगात्मक परस्पराश्रयिता-- Emotional Mutual Dependency के रूप में समझा जा सकता है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता की मात्रात्मक स्थिति की पारस्परिकता हमेशा एक जैसी नहीं रहती है, एक खास परिवृत्त -- Range--- में गतिमान रहती है। संवेगात्मक परस्पराश्रयिता की मात्रात्मकता की अधिकता के अधिक समय तक एक मान पर स्थिर रहने या पारस्परिकता में असंतुलन बढ़ जाने से से व्यक्तित्व में एक अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है जिसे Emotional Dependency Disorder के रूप में समझा जा सकता है। इसे दूर किया जा सकता है...

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सादर, प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan