वही मिजाज, हाँ वही तो हो


बड़े लोगों के आगमन की खबर पाकर रास्ते की मरम्मत तेजी से होने लगती है। साफसफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है। आननफानन में व्यवस्था को दुरुस्त करने का प्रयास किया जाता है। बड़े लोग आते हैं और चले जाते हैं, कुछ दिनों तक ही सही साधारण लोगों को भी इस दुरुस्तीकरण का लाभ मिलता रहता है। सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाओं का इस्तेमाल बड़े लोग नहीं करते हैं इसलिए उनके रखरखाव पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है। बड़े लोगों के बच्चों सार्वजनिक स्कूल में दाखिला लेने से, उस स्कूल के स्तर के वैसे ही यथायोग्य होने की संभावना बढ़ सकती है। बड़े लोगों के सार्वजनिक परिवहन का व्यवहार करने से सार्वजनिक परिवहन की दशा सुधर सकती है। बड़े लोगों को जेल होने से जेल तक का स्तर सुधर जाता है। इसलिए ऐसी धारणा रही है कि सार्वजनिक सेवा संस्थानों का इस्तेमाल बड़े और बहुत बड़े लोग (वीआइपी) करें तो सेवा संस्थानों की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है। रखरखाव में लगे अधिकारी-कर्मचारी चाकचौबंद होकर अपना काम करेंगे। जिसका फायदा आम लोगों को भी मिल सकता है। 

अब यह धारणा खंडित हो गई है। बड़े लोगों के सार्वजनिक संस्थान आम आदमी को बिना किसी पूर्व सूचना के सार्वजनिक स्थल से खदेड़ बाहर किया जाता है। जिस रास्ते से वे गुजरते हैं, उन रास्तों को आम आदमी के लिए घंटों बंद कर दिया जाता है। किसी कारण से तात्कालिक रूप से साधारण आदमी के उधर से गुजरने की अनुमति दी जाती है तो उसे इतनी हुज्जत का सामना करना पड़ता है कि नाक में दम आ जाये। यह सब होता है सुरक्षा के नाम पर। ठीक है कि सुरक्षा तो सुनिश्चित की ही जानी चाहिए, लेकिन हर किसी की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। दिल्ली के मेट्रो के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के इस्तेमाल से कैसी परेशानी लोगों को हुई थी, यह लोगों के ध्यान में है। बड़े लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साधारण आदमी को अव्यवस्था या असुरक्षा में डालना उचित नहीं कहा जा सकता। बड़े लोग सार्वजनिक संस्थानों की सेवाओं का इस्तेमाल करें इसके लिए साधारण आदमी को सार्वजनिक संस्थानों की सेवाओं का इस्तेमाल करने से वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन यह सब होता है।

इस तरह के समाचार आ रहे हैं कि प्रधानमंत्री अपने स्वास्थ्य की सामान्य जाँच के लिए एम्स गये थे। उनके सामान्य जाँच के लिए एम्स में असामान्य परिस्थिति बन गई। दूर-दराज से आये मरीजों को भी दरकिनार कर दिया गया। यह ठीक है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा सुनिश्चित किया जाना हम सब की प्राथमिकता है। लेकिन यह सवाल प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोगों के सामने क्यों नहीं होना चाहिए कि लोगों को परेशानी में डाले बिना कैसे सुरक्षा सुनिश्चित किया जाये! खासकर तब जब नरेंद्र मोदी जैसे साहसी प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था का मामला हो। लालकिला से बिना किसी सुरक्षा घेरेबंदी के भाषण करने का साहस रखनेवाले प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था को क्या बिना किसी हंगामे के सुनिश्चित नहीं किया जा सकता था? यह ठीक है कि बड़े लोगों का मामला है। यह वे ही तय कर सकते हैं। वे जब चाहें खुले आम प्रकट हो जायें, जब चाहें आम जगह पर आम आदमी का घुसना बंद कर दें। यह बड़े लोगों का मामला है। बड़े लोगों के मामलों में, संविधान, कानून, जनतंत्र, समानता, अधिकार आदि की भावनाओं का कोई मतलब ही नहीं होता है! ऐसे मामलों में, संविधान, कानून, जनतंत्र, समानता, अधिकार आदि को घसीटना ठीक नहीं है, यह बड़े लोगों की तो है ही मुल्क की भी तौहीन है! वही काफिला, वही मिजाज, हाँ वही तो हो!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यहाँ मन में उठनेवाली बातें हैं। अनुरोध है कि कृपया, अपने मन की बात कहें और व्यक्तिगत टिप्पणी न करें।
सादर, प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan