ओ मेरी जाँ नहीं मैं जिंदा हूँ तेरे अंदर
चाँद को पता है जानता है समंदर
पूछो चाँद से देखो क्या कहता है समंदर
घुमड़ता है जुल्फों में जो आँसू का समंदर
सुमन कहो फूल कहो गुल खिलता है मेरे अंदर
एक और जिंदगी है साँसों में साँसों के अंदर
नाचती है मुकम्मल महबूब की तस्वीर पुतलियों के अंदर
और दुनिया खोजती है जख्मों के निशान मेरे अंदर
चोट जब तेरे दिल को लगती निशान उभरता है मेरे अंदर
मत पूछ क्या उठाती गिराती है तेरी खामोशियाँ मेरे अंदर
नजरशनाशी की सलाहियत बिफरती है सुबह शाम मेरे अंदर
लियाकत शिकायती खतों का बंडल रोज डालती है मेरे अंदर
छुप छुपा कर देखो कि खाली पाँव कैसे घुसता हूँ तेरे अंदर
है हुनर को सलाम हँसता हूँ बाहर जो रोता हूँ घर के अंदर
घर मुस्कुराने की जगह नहीं जो घर नहीं कोई घर के अंदर
है मेरी महबूब की क्या खूब पनाह निगाही मुकम्मल मेरे अंदर
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सादर, प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan