3 अगस्त 14: तुलसी जयंती पर कार्यक्रम
अधिकतर लोगों में, तुलसी की धार्मिकता ही आकर्षण है। युवा लोग ऐसे कार्यक्रमों से दूर होते जा रहे हैं। एक तो, सारे युवाओं के बारे में इस तरह कहना ठीक नहीं। और फिर हों भी क्यों नहीं। साहित्यिक कार्यक्रम यदि प्रवचन में बदलने लग जाये तो यह तो होना ही है। फिर आज अज्ञान, न भी कहें तो गैर-जानकारी, का तुरत पकड़ा जाना सहज हो गया है। यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने स्रोत को ही सदा विश्वसनीय मान कर चलता है। वक्तव्यों की गुणवत्ता का क्षरण ही साहित्यिक कार्यक्रमों में युवाओं की समाप्तप्राय भागीदारी के लिए जवाबदेह है। यह ठीक है कि हर बार नया कहना संभव नहीं होता है, लेकिन नये तरीके से और नये तथ्यों से जोड़कर तो कहा ही जा सकता है!
डॉ. शंभुनाथ, डॉ. मंजूरानी सिंह आदि ने चर्चा की। महेश जायसवाल और संतोष सिंह की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय है। आयोजन में प्रमुख भूमिका गोस्वामी जी की थी। यह कार्यक्रम प्रसिद्ध हनुमान पुस्तकालय में था। एक जमाने में यह पुस्तकालय बहुत ही जीवंत हुआ करता था। आज यह अपने अस्तित्व की उपस्थिति जताने के लिए संघर्ष कर रहा है।
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सादर, प्रफुल्ल कोलख्यान Prafulla Kolkhyan